मंदी दिमाग में है, बाजार में नहीं!


सही मायने में मंदी, मंदी नहीं मौका है। मौका ज्यादा कमाने का, ज्यादा बनाने का, ज्यादा सहेजने और जुटाने के प्रयास का। ना मानो तो इन पर जरा विचार कर लो...

- प्रॉपर्टी मार्केट ठप्प बताया जा रहा है, लेकिन रीयल बायर्स बेझिझक निवेश कर रहे हैं। अगर आप प्रॉपर्टी के ऐसे पुख्ता खरीदारों की संख्या जुटाएं, तो आज भी आंकड़ा काफी ऊपर है। जो प्रॉपर्टी डीलर मान रहे हैं कि मंदी नहीं है खरीदार तो अब भी मिल रहे हैं, वह जमकर कमा भी रहे हैं।

- सुना है कंपनियां छंटनी कर रही हैं। वह भी छंटनी नहीं है, अवसर है। कंपनी के नजरिए से देखें, वह अपने बेहतरीन और उच्च क्षमता वाले लोगों के साथ काम करने में हमेशा दिलचस्पी लेती है। जो काम करता है और कर सकता है, उसे कोई दिक्कत नहीं। ...आखिर अच्छे लोग कंपनी में होंगे, तो कंपनी को ही फायदा होगा न।

- जितनी कारें, इस कथित मंदी के माहौल में बिकी हैं, पिछले किसी सीजन में नहीं बिकी। किसी कार शोरूम के डीलर से अकेले में बात कीजिए या फिर आंकड़े तलाशिए आप खुद जान जाएंगे।

- 1929 में जब मंदी आई थी, तो नेटवर्क मार्केटिंग का उदय हुआ था। बहुत गहरा विषय है यह। इसने उस मंदी में लोगों कि जितनी मदद की, मिसाल देने जैसा है। आज भी नजर दौड़ाएं, गौर से देखें, नेटवर्क मार्केटर्स बढ़ रहे हैं। कंपनियां बढ़ रही हैं। नेटवर्किंग के बाजार का औसत अनुपात बढ़ ही रहा है। घट नहीं रहा।

- आप और हम नौकरी करते हैं, कम समझ में आएगा। लेकिन एक एंटरप्रेन्योर से पूछिए इस माहौल में कम लागत पर कंपनियां स्थापित करने के ढेरों अवसर मौजूद हैं, बस आपके आइडिए में दम हो।

- अखबारों के क्लासिफाइड्स में लुभावने, दोस्ती बनाने, ज्यादा कमाने जैसे पैसा उलझाने वाले विज्ञापन तेजी से बढ़ रहे हैं। जब लोग पैसा डालेंगे ही नहीं, तो ऐसे विज्ञापन बढ़ेगे ही कैसे?

यह सब मौके हैं, मौका कंपनी के पास, कार या प्रॉपर्टी बेचने वाले के पास, नेटवर्किंग करने वाले के पास, एंटरप्रेन्योर और ढेर सारे ऐसे ही लोगों के पास। दिमाग दौड़ाइए, मंदी को भगाइए। जितनी जल्दी इसे दिल-दिमाग से निकाल देंगे, कम से काम आपकी मंदी जरूर दूर हो जाएगी।
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7 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छज्ञ विश्‍लेषण किया है .. सचमुच मंदी दिमाग में है, बाजार में नहीं!

M VERMA said...

मन्दी का अच्छा पोस्टमार्टम किया है आपने.
बहुत अच्छा विश्लेषण

दिनेशराय द्विवेदी said...

अवसर हैं जिन के लिए अवसर हैं। जनता के लिए तो बस झेलना है।

के सी said...

प्रवीण जी अर्थशास्त्रियों को मात करती हुई पोस्ट है
सच है कभी तो कम सोचो और अच्छा सोचो के साथ खुश भी रहना चाहिए

Dileepraaj Nagpal said...

सही मायने में मंदी, मंदी नहीं मौका है। मौका ज्यादा कमाने का, ज्यादा बनाने का, ज्यादा सहेजने और जुटाने के प्रयास का।
Poori Baat To Yahin Kah Gye Aap. Samjhe Kon...

Ajay Singh Rathore said...

Praveen sir apne jo apne positive attitude Jabardast attitude ko is post k jariye Prastut kiya hai Kamal ka hai. muhe apki is post se bahut seekh mili h, Thank you Sir.

bilaspur property market said...

भाई साहब आप ने ठीक अर्थ निकला